आस्था और अंथविश्वास

आस्था और अंधविश्वास ने पूरे संसार को अपने आगोश में जकड़ रखा है लेकिन जिस प्रकार का अंधविश्वास हमारे देश में रहा है ऐसा शायद कहीं भी नहीं। जितना अंधविश्वास हमारे सभ्य कहे जाने वाले समाज में है ऐसा हमारे आदिवासी कहे जाने वाले क्षेत्रो में भी नहीं। जितना अंधविश्वास धनाडय वर्ग और नेताओं में है वैसा गरीबो में नहीं। जितना अंधविश्वास शहरो में है उतना गाँव में नहीं। शहरो में हर कार्य का श्री गणेश हिन्दू समाज देवी देवताओं की मूर्तियों को अगरबत्तियो का सुगंधित धुआ सुंघा कर आरम्भ करते है और यदि किसी को एक छींक भी आ जाये तो पूरे दिन के कार्यक्रम बदल जाते हैं। यह अंधविश्वास की पराकाष्ठा है।

अंधविश्वास के चलते ही देश के विभिन्न मंदिरों में अपार सोना चांदी व हीरे जवाहरात इकट्ठे होते रहे जिसने विदेशियों को ललचाया और भारत पर एक के बाद एक ताबड़ तोड़ हमले होते रहे और पूरा भारत वर्ष गुलाम होता चला गया। इसी अंधविश्वास का वर्तमान में जीता जागता प्रमाण केरला का श्री पदमनाभ्स्वामी मंदिर है जिसमे अरबो रुपयों की सम्पति पर पुजारी कुंडली मारे बैठे हैं।

अंधविश्वास का परिणाम है कि आज देश में डेरे तथा तथाकथित भगवान् फल-फुल रहे है जिनको नेताओं का पूरा सरंक्षण प्राप्त है क्योंकि ये डेरे इनके वोट बैंक भी बन चुके है। नतीज़न एक तरफ देश की अन्धविश्वासी जनता इधर से उधर शान्ति, समृधि एवं गुरुनामी के चक्कर में भटक रही है, सड़क दुर्घटनाओ में रोजाना मर रही है और दूसरी तरफ पाखंड और गुरुडम फल-फुल रहा है और देश को गर्त की तरफ धकेल रहा है। समाचार पत्र एवं टीवी अपनी आमदनी बढाने के चक्कर में वही परोस रहे हैं जो गद्दीनशीन नेता चाहते हैं।

भ्रष्टाचार के मूल में भी अंधविश्वास ही है। प्रति-दिन करोड़ो रूपये देवी-देवताओं को मंदिर में इस शर्त पर चढ़ाए जा रहे है कि देवी देवता उनकी मनोकामना पूरी करेंगे। कहने का अर्थ है कि पहले देवताओं को रिश्वत का लालच दो और फिर उनसे अपना मनचाहा कार्य करवाओ।

जब भगवान और देवी देवताओ को इस प्रकार का लालच देकर रिश्वत दी जासकती है तो फिर मनुष्य को रिश्वत देने-लेने में कोनसा दोष है। इस से सिद्ध होता है कि भ्रष्टाचार स्पष्ट तौर पर अंधविश्वास से जुड़ा है।